कुशवाहा कांत हिंदी के लोकप्रिय
उपन्यास लेखन में बड़ा नाम है। उन्होंने न सिर्फ रुमानी लेखनी में बल्कि
क्रांतिकारी और जासूसी उपन्यास लेखन में बड़ा नाम कमाया। 25 साल के आसपास की उम्र
में हिंदी के उपन्यास जगत में बेस्टसेलर लेखक बन चुके थे। 1940 से 1950 के दशक में
हिंदी पट्टी में उनकी किताबें धूम मचा रही थीं। युवा पीढ़ी उनकी रचनाओं की इस तरह
दीवानी थी कि उनकी नए उपन्यास का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे। हिंदी उपन्यास के
पाठकों में गुलशन नंदा के समान लोकप्रिय थे। काफी कम उम्र में वे हिंदी जगत में
काफी लोकप्रिय हो गए थे।
कुशवाहा कांत की ज्यादातर
किताबें उनके गृह प्रकाशन वाराणसी के चिनगारी प्रेस से छपती थीं। कुशवाहा कान्त का जन्म 9 दिसम्बर 1918 को मिर्जापुर शहर के महुवरिया नामक मुहल्ले में हुआ। लेखन और कल्पनाशीलता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में शामिल थी। कुशवाहा
कान्त ने नौवीं कक्षा में ही ‘खून का प्यासा’ नामक जासूसी उपन्यास लिख डाला था।
कुशवाहा कांत बाद के दिनों वाराणसी में आकर रहने लगे थे। युवा कुशवाहा
कांत रजत पट के किसी अभिनेता के माफिक खूबसूरत थे। रुमानीयत तो उनके कलम में कूट
कूट कर भरी थी। तब वाराणसी हिंदी साहित्य प्रकाशन जगत का केंद्र हुआ करता था। आज र
संसार जैसे देश बड़े अखबार यहां से प्रकाशित होते थे। हिंदी प्रचारक संस्थान,
चौखंभा विद्या भवन जैसे तमाम बड़े प्रकाशक बनारस में थे। एक लेखक होने के साथ वे
व्यसायिकता में तीक्ष्ण बुद्धि के थे। उन्होंने अपना पारिवारिक प्रकाशन संस्थान
चिनगारी प्रकाशन खोला। उनके ज्यादातर उपन्यास चिनगारी प्रकाशन से ही आए। प्रारंभ
में कुशवाहा कान्त की कृतियां 'कुँवर
कान्ता प्रसाद' के नाम से प्रकाशित होती थीं। बाद में
उन्होंने अपना नाम कुशवाहा कांत रख लिया। रुमानी साहित्य के क्षेत्र में उनका नाम
ब्रांड बन गया था। पर वे लोकप्रियता के उच्च शिखर पर चल रहे थे कि अचनाक सब कुछ
बिखर गया। हिंदी जगत का ये लोकप्रिय लेखक मात्र 33 साल की उम्र में इस दुनिया को
छोड़कर चला गया। 29 फरवरी 1952 को वाराणसी के कबीरचौरा के पास गुण्डों ने उनपर आक्रमण
किया, जिसमें कुशवाहा कान्त की मृत्यु हो गई। उनके ऊपर हमला
क्यों हुआ इसको लेकर सच्चाई कभी सामने नहीं आ सकी। पर हिंदी जगत का महान लेखक देश
के लाखों पाठकों को उदास कर गया।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी
पुस्तकें लंबे समय तक बाजार में बेस्ट सेलर के तौर पर बिकती रहीं। आज भी रेलवे बुक
स्टाल पर उनके उपन्यास आपको पढने के लिए मिल जाएंगे। उनके उपन्यासों का जादू
पाठकों को इस तरह बांधे रखता था कि किसी भी उपन्यास के पहले पन्ने का पहला
अनुच्छेद पढ़ने के बाद आप पूरी पुस्तक पढ़कर ही चैन लेते थे। युवा अवस्था में ही
वाराणसी के लोकप्रिय सख्शियत में शुमार हो गए थे। कुशवाहा कांत ने 'महाकवि मोची' नाम से कई हास्य नाटकों और कविताओं का भी सृजन किया।
- लाल रेखा
- पपीहरा
- पारस
- परदेसी (दो भाग)
- विद्रोही सुभाष
- नागिन
- मद भरे नैयना
- आहुति
- अकेला
- बसेरा
- कुमकुम
- मंजिल
- नीलम
- पागल
- पागल
- जलन
- लवंग
- निर्मोही
- अपना-पराया
- mauryavidyut@gmail.com
( KUSHWAHA KANT, NOVEL, VARANASI, MIRJAPUR, CHINGARI PRESS )
कुशवाहा कांत जी के बारे में अच्छी जानकारी दी आपने ।
ReplyDeleteअब उपन्यास पढने की इच्छा भी जाग गयी।
धन्यवाद
Mere ghar me kushwaha ji ka khun ka pyasa noble ka kuch page tha jise mai 2003 me pdha tha . Tab se mujhe pura padhne ka man he lekin hme . Nhi mil rha he. So please kisi k pass h to Please mujhe padhne k lie digiye mera watsapp nd contact no. 9176378198
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा यह पढ़कर। अपने समाज के बारे में जानना एक अलग उत्साह देता है। अगर आप लोग भी उत्साहित है तो थोड़ा सा समय निकाल कर इनकी उपन्यास पढ़ लीजिये। धन्यवाद।
ReplyDeletehere could I get his novels Lal Rekha and Nirmohi.
ReplyDeleteI wish to read them, very impressive novels which I read in my childhood.
Regards,
Sitendra Kumar
राजकमल प्रकाशन ने हाल हीं में छापा है,मेरे पास है, मैं कुशवाहा कान्त जी के घर चिंगारी प्रेस से भी लाया हूँ
Deleteकुशवाहा कान्त जी के बारे में दी जानकारी के लिए शत शत धन्यवाद !
ReplyDeleteदुःखद �� बात है कि उनके जैसे महान सरस्वती-पुत्र की हत्या कर दी गई। और हत्यारे पकड़े भी न गए और हत्या की गुत्थी भी नहीं सुलझी ��
मित्र कुशवाहा कांत जी मेरे दूर के रिलेटिव थे मेरे नाना लगते थे उनकी हत्या उनके प्रिंटिंग प्रेस चिंगरी एक्सप्रेस में काम करने वाले एक कर्मचारी ने करवाई थी वजह उसकी पत्नी से अनैतिक कार्य था
Deleteमुझे कान्त सर की किताब कहा मिलेगी।। कृपया जरूर बताइए
ReplyDeleteThere are two more parts of 'Lal Rekha'- which are 'Krantidoot' & 'Barood'. Where are these available?
ReplyDeleteअच्छी जानकारी दी आपने। आभार।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है....
ReplyDeleteकुशवाहा कांत पर मेरा एक लंबा लेख "हिंदी आलोचना का जनपक्ष"पुस्तक में देखें,जो किशोर विद्या निकेतन वाराणसी से छपी है।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसर कृपया वो लेख हम तक अवश्य पहुचाये!
Deleteव्हाट्सअप नंबर 7390052836
मुझे बहुत गर्व होता है कि कुशवाहा कान्त मेरे भाभी जी के नाना जी थे उनका परिवार बहुत पहले से ही सम्पन्न था महुरिया टोला और आज जो GIC कॉलेज उनकी ही जमीन पर बना हुआ है उस जमाने में उनकी जमीन पर पीतल और तांबे के बर्तन बनाने के कारखाने चलते थे उनके परिवार को अग्रेजो की तरफ से रोज 2 चांदी के सिक्के रोज मतलब महीने में 60 सिक्के मुवावजे के तौर पर मिलता था कुशवाहा कांत के मर्डर के किस्से मैं बहुत अच्छी तरह से जानता हूं लेकिन मैं लिख नही सकता लेकिन ये सच है कि इनका परिवार फिजूल ख़र्जी नबाबी शौक में बर्बाद हो गया पूरी जमीन इनके परिवार वालो ने अनाप शनाप में बेच दी आज कुछ पर केस चल रहा है
ReplyDeleteसर कृपया मेरे इस नंबर पर बात करें अवश्य
Delete7390052836
मेरे पास कुशवाहा बन्धु के 10 पाकेट बुक्स है ऊन्य की तलाश है
ReplyDeleteKya aap ise bechenge.
DeleteKhun ka pyasa,rakt mandir aur danav desh aapke hoga kya.hoga to jankari dene ka kasht kare
Deleteविजय कुमार सिंह कलहंस लखनऊ 9450504054
ReplyDelete8210313023 पर whatsapp या call करें।हमे आपका इंतजार है
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