Wednesday, November 30, 2016

कलम के कलाकार कुशवाहा कांत

कुशवाहा कांत हिंदी के लोकप्रिय उपन्यास लेखन में बड़ा नाम है। उन्होंने न सिर्फ रुमानी लेखनी में बल्कि क्रांतिकारी और जासूसी उपन्यास लेखन में बड़ा नाम कमाया। 25 साल के आसपास की उम्र में हिंदी के उपन्यास जगत में बेस्टसेलर लेखक बन चुके थे। 1940 से 1950 के दशक में हिंदी पट्टी में उनकी किताबें धूम मचा रही थीं। युवा पीढ़ी उनकी रचनाओं की इस तरह दीवानी थी कि उनकी नए उपन्यास का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे। हिंदी उपन्यास के पाठकों में गुलशन नंदा के समान लोकप्रिय थे। काफी कम उम्र में वे हिंदी जगत में काफी लोकप्रिय हो गए थे।
कुशवाहा कांत की ज्यादातर किताबें उनके गृह प्रकाशन वाराणसी के चिनगारी प्रेस से छपती थीं। कुशवाहा कान्त का जन्म  9 दिसम्बर  1918 को मिर्जापुर शहर के महुवरिया नामक मुहल्ले में हुआ।  लेखन और कल्पनाशीलता बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में शामिल थी। कुशवाहा कान्त ने नौवीं कक्षा में ही खून का प्यासानामक जासूसी उपन्यास लिख डाला था।

कुशवाहा कांत बाद के दिनों  वाराणसी में आकर रहने लगे थे। युवा कुशवाहा कांत रजत पट के किसी अभिनेता के माफिक खूबसूरत थे। रुमानीयत तो उनके कलम में कूट कूट कर भरी थी। तब वाराणसी हिंदी साहित्य प्रकाशन जगत का केंद्र हुआ करता था। आज र संसार जैसे देश बड़े अखबार यहां से प्रकाशित होते थे। हिंदी प्रचारक संस्थान, चौखंभा विद्या भवन जैसे तमाम बड़े प्रकाशक बनारस में थे। एक लेखक होने के साथ वे व्यसायिकता में तीक्ष्ण बुद्धि के थे। उन्होंने अपना पारिवारिक प्रकाशन संस्थान चिनगारी प्रकाशन खोला। उनके ज्यादातर उपन्यास चिनगारी प्रकाशन से ही आए। प्रारंभ में कुशवाहा कान्त की कृतियां 'कुँवर कान्ता प्रसाद' के नाम से प्रकाशित होती थीं। बाद में उन्होंने अपना नाम कुशवाहा कांत रख लिया। रुमानी साहित्य के क्षेत्र में उनका नाम ब्रांड बन गया था। पर वे लोकप्रियता के उच्च शिखर पर चल रहे थे कि अचनाक सब कुछ बिखर गया। हिंदी जगत का ये लोकप्रिय लेखक मात्र 33 साल की उम्र में इस दुनिया को छोड़कर चला गया। 29 फरवरी 1952 को वाराणसी के कबीरचौरा के पास गुण्डों ने उनपर आक्रमण किया, जिसमें कुशवाहा कान्त की मृत्यु हो गई। उनके ऊपर हमला क्यों हुआ इसको लेकर सच्चाई कभी सामने नहीं आ सकी। पर हिंदी जगत का महान लेखक देश के लाखों पाठकों को उदास कर गया।
उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी पुस्तकें लंबे समय तक बाजार में बेस्ट सेलर के तौर पर बिकती रहीं। आज भी रेलवे बुक स्टाल पर उनके उपन्यास आपको पढने के लिए मिल जाएंगे। उनके उपन्यासों का जादू पाठकों को इस तरह बांधे रखता था कि किसी भी उपन्यास के पहले पन्ने का पहला अनुच्छेद पढ़ने के बाद आप पूरी पुस्तक पढ़कर ही चैन लेते थे। युवा अवस्था में ही वाराणसी के लोकप्रिय सख्शियत में शुमार हो गए थे। कुशवाहा कांत ने 'महाकवि मोची' नाम से कई हास्य नाटकों और कविताओं का भी सृजन किया।

लाल रेखा के 1954 में प्रकाशित संस्करण का कवर पेज 
कुशवाहा कान्त की प्रमुख कृतियां
- लाल रेखा
- पपीहरा
- पारस
- परदेसी (दो भाग)
- विद्रोही सुभाष
- नागिन
- मद भरे नैयना
- आहुति
- अकेला
- बसेरा
- कुमकुम
- मंजिल
- नीलम
- पागल
- जलन
- लवंग
- निर्मोही
- अपना-पराया


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( KUSHWAHA KANT, NOVEL, VARANASI, MIRJAPUR, CHINGARI PRESS ) 

Saturday, November 26, 2016

मध्य प्रदेश के पिछड़े वर्ग के प्रखर नेता थे बाबूलाल कुशवाहा भानपुर

मध्य प्रदेश के पिछड़ा वर्ग के प्रमुख नेतों में शुमार थे बाबूलाल कुशवाहा भानपुर। जिंदगी भर वे भाजपा की केसरिया टोपी सिर पर धारण किए रहे। वे मध्य प्रदेश में जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में थे तो भाजपा के भी संस्थापक सदस्यों में थे। मध्य प्रदेश में बाबू लाल नाम के कई नेता हैं। पर वे अपने नाम के साथ अपने गांव के नाम के उपनाम यानी भानपुर वाले के नाम से जाने जाते थे। अपने जीवन काल में उन्होंने मध्य प्रदेश के लगभग हर गांव का दौरा किया था। उनकी ख्याति सिर्फ कुशवाहा समाज में ही नहीं बल्कि मध्य प्रदेश के पिछड़े वर्ग के हर बिरादरी के बीच थी।
जमीन से जुडे इस नेता को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपना राजनीतिक संरक्षक मानते थे। वे बताते हैं कि बाबू लाल भानपुर ने ही उन्हें जनसंघ का सदस्य बनाया था। भोपाल के छोला रोड स्थित उनके आवास पर जाने वाला कोई भी उनका समर्थक विरोधी बिना भोजन किए नहीं लौटता था। मध्य प्रदेश में बाबू लाल भानपुर लंबे समय तक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रहे। वे लंबे समय तक अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष  भी रहे।

बाबूलाल कुशवाहा भानपुर ( पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ,अखिल भारतीय कुशवाहा महासभा) का अकास्मिक निधन 23 नवंबर 2016 को रात्रि लगभग 12.15  बजे हो गया। उनका अंतिम संस्कार 24 नवंबर को दोपहर बाद छोला विश्राम घाट भोपाल में हुआ।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एंव भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक सदस्य, भानपुर के बाबुलाल कुशवाहा का निधन मध्यप्रदेश के लिए अपूरणीय क्षति है।
-         ---शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेश

कुशवाह मेरे राजनैतिक संरक्षक थे - शिवराज
 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व अध्यक्ष राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग बाबूलाल कुशवाह भानपुर के निधन पर शोक व्यक्त किया है। चौहान शोक संवेदना प्रगट करने आज गली नंबर एकछोला रोडभोपाल स्थित उनके निवास पहुंचे। इस अवसर पर महापौर आलोक शर्मा भी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि स्वर्गीय कुशवाह जी के साथ उनका गहरा लगाव था। कुशवाह जी के राजनैतिक संरक्षण और मार्गदर्शन में ही वे जनसेवा के संकल्प पथ पर चले हैं। जनसेवा के संकल्प में उनका मार्गदर्शन सदैव मिलता था। उन्होंने स्वर्गीय कुशवाह की स्मृतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनसे ही राजनीति में प्रवेश की प्रेरणा भी मिली थी। उनको जनसंघ की सदस्यता भानपुर ने ही दिलाई थी। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि स्वर्गीय कुशवाह कर्मठ,  कुशल संगठकलोकप्रिय जननेता और कार्यकर्ताओं के प्रेरणा-स्त्रोत थे। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की शांति एवं उनके परिजनों एवं अनुयायियों को इस गहन दु:ख को सहन करने की शक्ति देने की ईश्वर से प्रार्थना की।
 उनकी सेवाओं को भुलाया नही जा सकता
भोपाल। वाणिज्य उद्योग एवं रोजगार तथा खनिज साधन मंत्री श्री राजेन्द्र शुक्ल ने भोपाल के जाने-माने वरिष्ठ नेता तथा अपनी एक अलग पहचान के लिए जाने-जाने वाले बाबूलाल कुशवाह भानपुर के निधन पर गहन शोक व्यक्त किया है।  शुक्ल ने अपने शोक संदेश में कहा है कि बाबूलाल कुशवाह जनसंघ तथा भाजपा के बुर्जुग सदस्यों में शामिल थे। वे एक सक्रिय जमीनी नेता थे।  उनकी सेवाओं को भुलाया नही जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्व. भानपुर ने सार्वजनिक जीवन में दी गई सेवाओं तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग के अध्यक्ष के रूप में उनके दिये योगदान को भुलाया नही जा सकता। 
( BABU LAL KUSHWAHA BHANPUR, MP, BJP, BMS, JANSANGH )
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Friday, November 25, 2016

गाजीपुर के लाल मनोज कुशवाहा शहीद

जम्मू- कश्मीर के माछिल सेक्टर में 22 नवंबर 2016 को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले में भारतीय सेना के तीन जवान शहीद हो गए । इस हमले में शहीद हुए जवानों में दो जवान गाजीपुर जिले के हैं जिसमें बधुपुर गांव के रहने वाले 30 साल के मनोज कुशवाहा जम्मू आर.आर पखवाडा में गनर के तौर पर तैनात थे। मनोज की शादी 11 साल पहले हुई थी।
बिरनो क्षेत्र के बद्दोपुर गांव निवासी हरीलाल कुशवाहा के बड़े बेटे 31 वर्षीय मनोज कुशवाहा 2002 में गोरखपुर में हुई सेना भर्ती परीक्षा में भाग लिया था। उनकी पहली पोस्टिंग हैदराबाद में हुई थी। वर्तमान में वह कश्मीर में एलओसी पर तैनात थे। 
 मनोज तीन भाइयों में सबसे बड़े थे। मझला भाई बृजमोहन कुशवाहा चट्टी पर दुकान चलाते हैं। सबसे छोटे भाई अरुण कुशवाहा अभी पढ़ाई करते हैं। सेना में भर्ती होने के बाद मनोज की शादी वर्ष 2006 में नानेहरा थाना क्षेत्र के महुवी गांव निवासिनी मंजू देवी के साथ हुई थी। मनोज की सात साल  की बेटी मुस्कान और 4 साल का बेटा मानव है। इकलौती बहन प्रिया की शादी मऊ के रानीपुर-फत्तेपुर गांव में हुई है। 

मनोज के पिता हरिलाल कुशवाहा ने ने रोते हुए बताया कि वह दिल्ली में नौकरी करते है और बेटे से कभी-कभी बात हो पाती थी। बेटे की शहादत पर फख्र है। मनोज के गांववालों का कहना है कि हमें आज गर्व है कि हमारे गांव से शहादत का नाम जुड़ा है लेकिन पाकिस्तान को सरकार अब मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है। 
(MANOJ KUSHWAHA, GAZIPUR, ARMY ) 

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Thursday, November 24, 2016

अमर शहीद जगदेव प्रसाद : जीवन और विचार

युवा लेखक जीतेन्द्र वर्मा की नई पुस्तक ‘अमर शहीद जगदेव प्रसाद: जीवन और विचार’ प्रकाशित हुई है। इसके पहले भी उन पर कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं परंतु यह पुस्तक प्रामाणिक तथा रोचक है।
इस छोटी सी पुस्तक में वर्मा ने जगदेव बाबू की जीवनी कथा की तरह कही है। पाठक इसमें बंधा रह जाता है। वर्मा साहित्य के समाजशास्त्र के विशेषज्ञ हैं। इस विषय पर इनकी पुस्तक ‘साहित्य का समाजशास्त्र और मैला आंचल’ चर्चित हो चुकी है। वर्मा ने जगदेव प्रसाद के कामों और युगीन सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों में सामंजस्य खोजा है। जगदेव प्रसाद का जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने राजनीति तथा समाज में खूब उठा-पटक मचाई। श्री वर्मा ने इसका औचित्य इस पुस्तक में बताया है। श्री वर्मा के अनुसार जगदेव प्रसाद के उठा-पटक का कारण तत्कालीन परिस्थितियों के निहित है। कोई भी व्यवस्था तोड़-फोड़ के बिना नहीं बदलती। यह पुस्तक अलग-अलग अध्यायों में बँटी है। इसकी एक विशेषता यह है कि घटनाओं को कहानीनुमा बनाकर प्रस्तुत किया गया है। उनका जीवन-संघर्ष दलित-पिछड़ों को मुक्ति की राह बताती है। यह पुस्तक भावुकता से भरी है। यह भावुकता ब्राह्मणवादी व्यवस्था के प्रति आक्रोश पैदा करती है। जगदेव बाबू के अमरत्व का आधार उनकी बौद्धिक तेजस्विता है। श्री वर्मा का ध्यान इस ओर गया है। उनके अनुसार ”दक्षिण भारत में जो काम ईवीरामास्वामी पेरियारमहाराष्ट्र में जो काम जोतिबा फुले और डाअंबेडकर ने कियाउसी तरह का काम बिहार में जगदेव प्रसाद का है।‘’ पुस्तक के दूसरे खंड में जगदेव बाबू के विचार संकलित हैं। इसमें एक लेख और दो साक्षात्कार शामिल हैं। इससे उनकी वैचारिक दृष्टि का पता चलता है। अभी तक उनका ठीक-ठीक मूल्यांकन नहीं हुआ है और न ही उन्हें उचित सम्मान मिला है। पिछड़ी जातियां ब्राह्मणवादी व्यवस्था की मानसिक गुलामी कर रही हैं। ऐसी परिस्थिति में इस पुस्तक का महत्त्व बढ़ जाता है। ऐसी पुस्तकों से समाज में जागृति आएगी।

पुस्तक-अमर शहीद जगदेव प्रसाद (जीवनी) 
लेखक-जीतेन्द्र वर्मा  मूल्य- रुपये 30/ मात्र   पहला संस्करण-2012
प्रकाशक-सम्यक प्रकाशन, 32/3, पश्चिमपुरीनई दिल्ली-110063
 समीक्षक : डा0 राधाकृष्ण सिंहप्राचार्य वीरायतन बीएडकालेज ,पावापुरीनालंदा,बिहार। 

( साभार - http://mediamorcha.com/

Wednesday, November 23, 2016

बिहार के लेनिन – जगदेव प्रसाद

जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को हुआ और शोषितों की आवाज उठाते हुए  5 सितम्बर 1974 को वे शहीद हो गए।  बिहार प्रान्त में जन्मे वे एक क्रन्तिकारी राजनेता थे। इन्हें 'बिहार लेनिन' के नाम से जाना जाता है। जगदेव बाबू को बिहार लेनिन उपाधि हजारीबाग जिला में पेटरवार (तेनुघाट) में एक महती सभी में वहीं के लखन लाल महतो, मुखिया एवं किसान नेता ने अभिनन्दन करते हुए दी थी।


एक महान व्यक्तित्व का जन्म - बोधगया के समीप कुर्था प्रखंड के कुराहरी गांव में जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को हुआ। बिहार में  जाति व्यवस्था के अनुसार दांगी जाति में जन्मे जो कुशवाहा की उपजाति है। उनके के पिता का नाम प्रयाग नारायण और माता का नाम रसकली देवी था। पिता  स्कूल में शिक्षक थे और माता गृहणी।
पत्रकारिता से शुरुआत
जगदेव प्रसाद बचपन से ही मेधावी छात्र थे। अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री लेने के बाद उनका रूझान पत्रकारिता की ओर हुआ। वे पत्र -पत्रिकाओं में लेखन का कार्य करने लगे। सामाजिक न्याय के आवाज उठाने वाले लेखों के कारण इन्हें काफी समस्या हुई। इन्ही दिनों वे सोसलिस्ट पार्टी से जुड़ गए ,उन्हें सोशलिस्ट पार्टी के मुखपत्र 'जनता' में संपादन का कार्यभार सौपा गया।  1955 में हैदराबाद जाकर अंग्रेजी साप्ताहिक 'सिटीजन ' और हिंदी पत्रिका 'उदय' के संपादन से जुड़े। अनेक धमकियों के बावजूद ये सामजिक न्याय और शोषितों के अधिकार हेतु जागरण के लिए अपनी लेखनी खूब चलाई प्रकाशक से मनमुटाव और अपने सिद्धांतो से समझौता न करने की प्रवृति के कारन वे त्यागपत्र देकर वापस पटना आ गए।
समाजवादी आंदोलन में
पटना आकर जगदेव प्रसाद समाजवादियों के साथ आन्दोलन में शामिल हो गए। 1957 में उन्हें पार्टी से विक्रमगंज लोकसभा का उम्मीदवार बनाया गया मगर वे चुनाव हार गए।
1962  में बिहार विधानसभा का चुनाव कुर्था से लड़े पर विजयश्री नहीं मिल सकी। वे 1967 में वे कुर्था विधासभा से पहली बार चुनाव जीते। इसी साल उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी और महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया। पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ। बाद में पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले पर उनकी राम मनोहर लोहिया से अनबन हुई।

शोषित दल का गठन -  'कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला' की स्थिति देखकर जगदेव प्रसाद ने संसोपा छोड़ दिया। संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी1966 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था। जगदेव प्रसाद ने 25 अगस्त 1967 को  'शोषित दल' नाम से नई पार्टी बनाई। उस समय अपने भाषण में कहा था- "जिस लड़ाई की बुनियाद आज मैं डाल रहा हूं, वह लम्बी और कठिन होगी।  चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूं इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे।जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।

शोषित समाज दल - 7 अगस्त 1972 को शोषित दल और रामस्वरूप वर्मा जी की पार्टी 'समाज दल' का एकीकरण हुआ और 'शोषित समाज दल' नमक नई पार्टी का गठन किया गया। एक दार्शनिक और एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नई उर्जा का संचार हुआ। जगदेव बाबू पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया। बिहार की राजनीति में एक ऐसे दौर की शुरुआत हुई जब जगदेव प्रसाद के क्रांतिकारी भाषण से कई तबके के लोगों को परेशानी होने लगी।

कुर्था में शहादत – पांच  सितम्बर 1974 को कुर्था में जनसभा दौरान जगदेव बाबू की हत्या कर दी गई। उस दिन रैली में में बीस हजार लोग जुटे थे। जगदेव बाबू ज्यों ही लोगों को संबोधित करने के लिए बाहर आए पुलिस प्रशासन के मौके पर मौजूद अधिकारी ने जगदेव बाबू को गोली मारने का आदेश दिया। समय अपराह्न साढ़े तीन बज रहे थे।  27 राउंड गोली फायरिंग की गई जिसमें एक गोली बारह वर्षीय दलित छात्र लक्ष्मण चौधरी को लगी और दूसरी गोली जगदेव बाबू के गर्दन को बेधती हुई निकल गई। जगदेव बाबू ने जय शोषित, जय भारतकहकर अपने प्राण त्याग दिए। सत्याग्रहियों में भगदड़ मच गई। पुलिस ने धरना देने वालों पर लाठी चार्ज किया। उसी दिन बीबीसी लन्दन ने पौने आठ बजे संध्या के समाचार में घोषणा किया कि बिहार लेनिन जगदेव प्रसाद की हत्या शांतिपूर्ण सत्याग्रह के दौरान कुर्था में पुलिस ने गोली मारकर कर दी।

जगदेव प्रसाद के दिए नारे

-        सौ में नब्बे शोषित हैं, नब्बे भाग ललकारा है।।

-        दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा।।

- गोरी गोरी हाथ कादो में, अगला साल के भादो में।।


- दो बातें हैं मोटी-मोटी, हमें चाहिए इज्जत और रोटी।।

(SHAHEED JAGDEV PRASAD, GAYA, KURTHA, DANGI, KUSHWAHA, SHOSHIT SAMAJ DAL ) 

Email - mauryavidyut@gmail.com